महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत :-
अल्फ्रेड लोथर वेगनर ने ने 6 जनवरी 1912 को फ्रैंकफर्ट में हुए भूगर्भीय सम्मेलन में दिया था। सन 1915 में अपनी पुस्तक ”द ओरिजिन ऑफ कॉन्टिनेंट एंड ओसियन” प्रकाशित की। वेगनर के अनुसार जलीय भाग पैंथलासा तथा स्थलीय भाग पेंजिया कहलाता है। इसके अनुसार पृथ्वी स्थल खंड के रूप में थी जिसे पेंजिया कहा गया तथा इसके चारों तरफ जलीय भाग था, पैंथलासा जिसे कहा गया।
अंगारा लैंड का विखंडन ” अंतिम ट्राईसिक युग” में हुआ तथा इसके विखंडन से उत्तरी अमेरिका महाद्वीप, यूरोप, एशिया और आर्कटिक का निर्माण हुआ।
गोंडवाना लैंड का विखंडन ” प्रथम जुरासिक युग” में हुआ तथा इसके विखंडन से दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप, अंटार्कटिका महाद्वीप का निर्माण हुआ।
Rajasthan का भौतिक विभाजन :-
भौगोलिक दृष्टि से राजस्थान का सबसे पहले विभाजन ”प्रोफेसर वी सी मिश्रा” ने 1967 में अपनी पुस्तक ”राजस्थान का भूगोल” में किया। इन्होंने राजस्थान को 7 प्रदेशों में विभाजित किया।
- नहरी क्षेत्र
- अरावली क्षेत्र
- शुष्क मरुस्थलीय क्षेत्र
- अर्द शुष्क क्षेत्र
- चंबल बिहड क्षेत्र
- पूर्वी कृषि औद्योगिक क्षेत्र
- दक्षिण पूर्वी कृषि प्रदेश
राजस्थान का दूसरी बार विभाजन SK सेन ने 1968 में जलवायु के आधार पर तीन भागों में किया।
राजस्थान का तीसरी बार विभाजन डॉ. रामलोचन सिंह ने 1971 में किया, इन्होंने राजस्थान को दो भागों कर उपभाग तथा 12 लघु प्रदेशों में विभाजित किया जो निम्न प्रकार है:-
- राजस्थान – ( A ) मरुस्थलीय क्षेत्र = ( a ) बीकानेर ( b ) बाड़मेर ( c ) जैसलमेर ( B ) बागड़ क्षेत्र = ( a ) लूणी क्षेत्र ( b ) घग्घर क्षेत्र ( c ) शेखावाटी क्षेत्र ( d ) नागौर क्षेत्र
- राजस्थान का पठार – ( A ) अरावली क्षेत्र = ( a ) उत्तरी अरावली ( b ) मध्य अरावली ( c ) दक्षिण अरावली ( B ) चम्बल बेसिन क्षेत्र = ( a ) निम्न चम्बल बेसिन ( b ) मध्यम चम्बल बेसिन
हरिमोहन सक्सेना और प्रो. तिवारी का वर्गीकरण :-
राजस्थान का सर्वमान्य विभाजन 1994 ईस्वी में डॉक्टर हनीमून सक्सेना और प्रोफेसर तिवारी ने अपनी पुस्तक राजस्थान का प्रादेशिक भूगोल में किया। इन्होंने राजस्थान को चार भागों में विभाजित किया।
- पश्चिम मरुस्थलीय प्रदेश = (A) शुष्क रेतीला या मरुस्थलीय क्षेत्र (B) अर्ध शुष्क प्रदेश [ बांगर प्रदेश ]
- अरावली पर्वतीय प्रदेश = (A) उत्तरी अरावली (B) मध्य अरावली (C) दक्षिण अरावली
- पूर्वी मैदानी प्रदेश = (A)चंबल बेसिन (B) बनास बेसिन (C) माही बेसिन
- पूर्वी पठारी प्रदेश/हाड़ौती क्षेत्र = (A) विंध्यन कागर (B) दक्कन का पठार = अर्द्ध चंद्राकार पहाड़ियां, नदी निर्मित मैदान, शाहाबाद उच्च भूमि, झालावाड़ का पठार, गंगाधर उच्च भूमि
राजस्थान के भौतिक प्रदेश, भारत का हिस्सा :-
- पश्चिमी मरुस्थल = उत्तरी विशाल मैदान या थार के मरुस्थल का हिस्सा है।
- अरावली पर्वतीय प्रदेश = प्रायद्वीपीय पठार का हिस्सा है।
- पूर्वी मैदानी प्रदेश = उत्तरी विशाल मैदान का हिस्सा है।
- दक्षिण पूर्वी पठार / हाडोती क्षेत्र = प्रायद्वीपीय पठार का हिस्सा है
पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश :-
मरुस्थल का अर्थ अमृत भूमि होता है अर्थात ऐसा क्षेत्र जहां वनस्पति नहीं पाई जाती। यह विश्व का 17वां सबसे बड़ा मरुस्थल है तथा उपोष्ण की दृष्टि से 9वां बड़ा मरुस्थल है।
पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश की उत्पत्ति नूतन महाकल्प के प्लीस्टोसीन कल में हुई। थार के मरुस्थल को टेथिस सागर का अवशेष माना जाता है।
टेथिस सागर के प्रमाण :-
- राजस्थान में खारे पानी की झीलें
- अवसादी चट्टानों की प्रधानता = कोयला, खनिज और तेल मिलते हैं।
- कुलधरा गांव में मछली के अवशेष प्राप्त होना।
- परंपरागत संसाधनों की प्रधानता होना।
- पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश को विश्व के सापेक्ष ग्रेट पोलि आर्कटिक अफ्रीका मरुस्थल का पूर्वी भाग है तथा इसे सहारा मरुस्थल का भाग भी माना जाता है।
- भारत में इसे थार के मरुस्थल का हिस्सा माना जाता है।
- पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश का क्षेत्रफल 209000 वर्ग किलोमीटर है। जो राजस्थान के क्षेत्रफल का 61.11 % है। इसकी जनसंख्या 40% है।
- वर्षा = 20 से 50 सेंटीमीटर
- मिट्टी = रेतीली या बलुई – इस मिट्टी की संगठन, उत्पादन और जल ग्रहण क्षमता कम होती है। तथा यहां पर एंटिसोल व एरिडीसोल मृदा पाई जाती है।
- अर्थव्यवस्था = पशुपालन और कृषि
- कृषि = चक्रीय कृषि, मिश्रित कृषि ( पशुपालन और कृषि कार्य ), विरल कृषि ( क्षेत्रफल अधिक तथा जनसंख्या कम )
- चट्टानें = अवसादी चट्टानी
- खनिज = अधात्विक खनिज ( चूना और जिप्सम )
- वनस्पति = जीरो फाइटस ( मरुद्भिद, झाड़ीनूमा, कांटेदार )
- भूगर्भिक रूप से जिप्सम का जमाव होने से यहां बाढ़ आती है।
मरुस्थलीकरण की समस्या से बचाव के लिए निम्न उपाय किए गए :-
1994 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मरुस्थल के प्रसार को रोकने के लिए 17 जून को मरुस्थलीकरण दिवस घोषित किया गया तथा 1995 से मरुस्थलीकरण दिवस मनाना शुरू हुआ।
मरुस्थलीकरण दिवस की थीम :-
- 17 जून 2020 = ”भोजन, आहार, रेशा व खपत एवं भूमि”
- 17 जून 2021 = ”एक साथ सुखे से ऊपर उठे” – 28 वां
- 17 जून 2022 = ”एक साथ सुखे से ऊपर उठे”
- 17 जून 2023 = ”हर लैंड हर राइट्स”
केंद्रीय शुष्क एवं अनुसंधान केंद्र ( CAZRI ) :-
इसकी स्थापना 1959 में हुई तथा इसका मुख्यालय जोधपुर में है। इसका उद्देश्य मरुस्थल के प्रसार को रोकना है। इसके केंद्र राजस्थान में पाली, बीकानेर और जैसलमेर में तथा भारत में लद्दाख व भुज ( गुजरात ) में है।
शुष्क वन अनुसंधान संस्थान ( AFRI ) :-
भारत में इसकी स्थापना 1985 में तथा राजस्थान में इसकी स्थापना 1988 में जोधपुर में हुई इसका उद्देश्य वनों का संरक्षण करना है।
- राजस्थान में थार के मरुस्थल का विस्तार 25 डिग्री उत्तरी अक्षांश से 30 डिग्री उत्तरी अक्षांश तथा 69 डिग्री 30 मिनट पूर्वी देशांतर से 70 डिग्री 45 मिनट पूर्वी देशांतर है।
- यह सर्वाधिक जैव विविधता वाला मरुस्थल है।
- ईश्वरी प्रसाद ने थार के मरुस्थल को रूक्ष प्रदेश कहा।
- हुवेन्सांग ने थार के मरुस्थल को गुर्जरात्रा कहा।
- थार के मरुस्थल का कुल क्षेत्रफल 233000 वर्ग किलोमीटर है तथा राजस्थान में इसका क्षेत्रफल 175000 वर्ग किलोमीटर है।
- यह विश्व का सबसे युवा मरुस्थल है इसका प्रवेश द्वार, मरुस्थल का सिंह द्वारा, मरुस्थल का केंद्र ” जोधपुर” को कहते हैं।
- थार के मरुस्थल में परंपरागत ऊर्जा संसाधन ( कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस ) व गैर परंपरागत ऊर्जा संसाधन ( सौर, पवन और बायोमास )आदि के भंडार पाए जाते हैं जिसके कारण इसे ”विश्व का शक्ति ग्रह” भी कहा जाता है।
पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश को दो भागों में विभाजित किया गया है-
- शुष्क मरुस्थल
- अर्ध शुष्क मरुस्थल
- शुष्क मरुस्थल का पूर्वी भाग 25 सेंटीमीटर सम वर्षा रेखा को स्पर्श करता है।
- अर्ध शुष्क मरुस्थल का पश्चिमी भाग 25 सेंटीमीटर सम वर्षा रेखा को स्पर्श करता है।
- शुष्क एवं अर्ध शुष्क मरुस्थल तथा राज्य में थार के मरुस्थल को दो भागों में विभाजित करने वाली सम वर्षा रेखा 25 सेंटीमीटर सम वर्षा रेखा है।
शुष्क मरूस्थल :- 2 भाग
1 बालुका स्तूप युक्त प्रदेश :- 58.50 %
मार्च- जुलाई में सर्वाधिक बालुका स्तूप बनते है। इस मरुस्थल को ”महान मरुस्थल” भी कहते है। इन्हे धोरे या धरियन भी कहते है।
बालुका स्तूप के प्रकार –
बरखान बालुका स्तूप :-
इनकी आकृति अर्धचन्द्राकार होती है। यह वनस्पति विहिन बालुका स्तूप होते है। इनके द्वारा सर्वाधिक अपरदन होता है। इनका सर्वाधिक विस्तार शेखावाटी में है तथा यह सर्वाधिक ओसियां ( फलौदी ), देशनोक ( बीकानेर ) में पाए जाते है।
अनुद्धैर्य बालुका स्तूप :-
इन्हे सीप/पवनानुवर्ती/रेखीय बालुका स्तूप भी कहते है। इनका निर्माण हवा की दिशा के समानांतर ( पवन विमुख ) होता है। यह जैसलमेर, जोधपुर, बाड़मेर, चूरू में पाए जाते है।
अनुप्रस्थ बालुका स्तूप :-
इन्हें अवरोधी या आडे बालुका स्तूप भी कहते हैं। इनका निर्माण हवा के समकोण ( पवन सम्मुख ) होता है। इनका विस्तार श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर में होता है।
पैराबोलिक बालुका स्तूप :-
यह बालुका स्तूप बरखान के विपरीत बनते हैं। इनका निर्माण पेड़ों के सहारे होता है तथा इनकी आकृति हेयर पिन के समान होती है। इनका विस्तार संपूर्ण मरुस्थल में होता है।
तारा बालूका स्तूप :-
इनका निर्माण अनियमित हवा के प्रवाह के द्वारा होता है तथा इनकी आकृति तारे नुमा होती है। इनका विस्तार मोहनगढ़ (जैसलमेर), सूरतगढ़ (गंगानगर) में होता है।
सब्र का फिज बालुका स्तूप :-
इनका निर्माण झाड़ी के सहारे होता है तथा यह छोटे-छोटे बालूका स्तूप होते हैं। इनका विस्तार संपूर्ण मरुस्थल में होता है।
नेटवर्क बालुका स्तूप :-
वह बालुका स्तूप जो लगातार बनते हैं, नेटवर्क बालूका स्तूप कहलाते हैं।
यारडन बालुका स्तूप :-
इन्हें लहरदार बालूका स्तूप या उर्मिका के नाम से भी जाना जाता है। इनका विस्तार जैसलमेर, जोधपुर और बाड़मेर में होता है।
Note :- सर्वाधिक बालुका स्तूप जैसलमेर में है तथा सभी प्रकार के बालों का स्तूप जोधपुर में पाए जाते हैं।
2 बालुका स्तूप मुक्त प्रदेश :-41.50%
लाठी सीरीज :-
- यह पोकरण से मोहनगढ़ तक भूगर्भिक मीठे जल की पट्टी है।
- इसकी खोज काजरी ने की।
- इसकी लंबाई 80 किलोमीटर तथा चौड़ाई 60 किलोमीटर है।
- इसमें चांदन नलकूप पाया जाता है, जिसे ”थार का घड़ा” भी कहते हैं।
- इसमें सेवण घास पाई जाती है। इसका वैज्ञानिक नाम लसीथुरस सीड़ीकुस है तथा यह प्रोटीन युक्त गैस है जो दुधारू पशुओं के लिए उपयोगी है। सेवण घास गोडावण पक्षी की प्रजनन स्थल भी है। सेवण घास के कटी हुए घास को ”लीलोन” कहते हैं।
- इस क्षेत्र में सोलर एनर्जी एंटरप्राइजिंग जॉन ( SEEZ ) स्थित है।
टाड/रन/प्लाया :-
बालू का स्तूपों के मध्य वर्षा जल से निर्मित अस्थाई व दलदली झील को प्लाया कहते हैं। यह जैसलमेर के पोकरण, भाकरी, बीरमसर स्थान पर पाए जाते हैं।
बाप बोल्डर :- बाप गांव, फलौदी
हिमानी द्वारा निक्षेपित गोल एवं चिकने पत्थरों के जमाव को बाप बोल्डर कहा जाता है। इसक निर्माण विंध्यन सुपर ग्रुप और अरावली सुपर ग्रुप के विखंडन से हुआ है।
पोकरण :- खेतोलाई, जैसलमेर
यहां पर भारत द्वारा परमाणु परीक्षण किए गए।
- Smiling Buddha :- भारत के द्वारा 18 मई 1974 को पोकरण में पहला परमाणु परीक्षण किया गया। इस समय भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी।
- Operation Shakti :- भारत के द्वारा 11 व 13 मई 1998 को पोकरण में दूसरा परमाणु परीक्षण किया गया इस समय भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई थे।
आकल गांव, जैसलमेर :-
यहां वुड फॉसिल्स पार्क उपस्थित है जिसमें डायनासोर के प्रमाण तथा समुद्री वनस्पति के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
फतेहगढ़, जैसलमेर :-
यहां से डायनासोर के विलुप्त होने के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
जैसलमेर में पीवणा सांप पाया जाता है जो सबसे जहरीला सांप है।
तनोट माता मंदिर :- जैसलमेर
इसका रखरखाव बीएसएफ द्वारा किया जाता है। तनोट माता सैनिकों की आराध्य देवी और थार की वैष्णो देवी के नाम से भी जानी जाती है।
कुलधरा गांव :- जैसलमेर
इसे पालीवाल ब्राह्मणों के द्वारा बसाया गया इसे भूतिया गांव भी कहा जाता है। यहां राज्य का प्रथम कैक्टस गार्डन है। यहां से मछली के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।
सम गांव :-
यह जैसलमेर में स्थित वनस्पति विहीन गांव है। यहां बीएसएफ द्वारा थीम पार्क बनाया गया।
BSF :-
इसकी स्थापना 1 दिसंबर 1965 को हुई। बीएसएफ राजस्थान फ्रंटियर का हेड ऑफिस जोधपुर में है तथा इसके आईजी पुनीत रस्तोगी है। बीएसएफ द्वारा प्रतिवर्ष जनवरी में ऑपरेशन सर्द हवा चलाया जाता है।
पूनम स्टेडियम :- जैसलमेर
यहां 2022 में बीएसएफ द्वारा 57 वां स्थापना दिवस ( दिल्ली से बाहर पहली बार ) मनाया गया।
सूरसागर :- जोधपुर
यहां से छीतर पत्थर का उत्पादन किया जाता है। उम्मीद पैलेस इन छीतर पत्थरो से बना है इसलिए इस छीतर पैलेस भी कहते हैं।
घोटारू :- जैसलमेर
यहां हिलियम गैस के भंडार हैं। यहां आसमान से देखने पर INDIA लिखा हुआ थीम पार्क स्थित है।
कनोई गांव :- जैसलमेर
यहां राजकुमारी रत्नावती गर्ल्स स्कूल है, यह अंडाकार स्कूल है इस स्कूल के वास्तुकार ”डायना केलोग” हैं तथा बच्चों के ड्रेस डिजाइनर ”सुब्यसाची” है।
बटाडू का कुआँ :- बाड़मेर
इसे रेगिस्तान का जल महल कहते है।
किराडू का मंदिर :- हाथमा गांव
इसे राजस्थान का खजुराहो कहते है। यह 5 मंदिरो का समूह है।
राजस्थान का मिनी खजुराहो – भंडदेवरा शिव मंदिर , बारां
अर्द्धशुष्क मरूस्थल :- 4 भाग
यह शुष्क प्रदेश 25 सेंटीमीटर सम वर्षा रेखा तथा अरावली पर्वतमाला के मध्य स्थित है। इस प्रदेश को संक्रमणीय या परीवर्ती प्रदेश भी कहते हैं जिसका अर्थ है शुष्क तथा अर्ध शुष्क परिस्थितियों का पाया जाना। इसका कुल क्षेत्रफल 75000 वर्ग किलोमीटर है।
इस चार भागों में विभाजित किया गया है-
घग्घर का मैदान :-
- यह मैदान श्रीगंगानगर हनुमानगढ़ और उत्तरी अनूपगढ़ में विस्तारित है।
- यह मैदान सर्वाधिक सेम की समस्या से प्रभावित है।
- घग्घर नदी के क्षेत्र को नाली/पाट/बग्गी कहते हैं।
- इस क्षेत्र को राजस्थान का अन्नागार भी कहा जाता है।
- बग्गी क्षेत्र – उपजाऊ क्षेत्र – श्री गंगानगर और हनुमानगढ़
शेखावाटी/तोरावती/बांगर/आंतरिक प्रवाह क्षेत्र :-
- यह क्षेत्र सीकर, चुरु, झुन्झनू और नीमकाथाना में विस्तारित है।
- इस क्षेत्र के मुख्य नदी कांतली नदी है।
- बांगड़ = पुराना जालोढ़
- शेखावाटी क्षेत्र में कच्चे कुएं को जौहड़ कहते हैं।
- जौहड़ के गहरे भाग को ”चोम्भी” कहते हैं।
- ढूँढाड़ क्षेत्र में कुएं को बेर या बेरा कहते हैं।
- ढूँढाड़ क्षेत्र में घास के मैदान को बीड़ा कहते है।
- शेखावाटी क्षेत्र में घास के मैदान को बीड कहते है।
नागौर उच्च भूमि :-
- यह क्षेत्र नागौर, डीडवाना-कुचामन में विस्तारित है।
- यह क्षेत्र सर्वाधिक फ्लोराइड प्रभावित क्षेत्र है।
- फ्लोराइड युक्त पानी से फ्लोरोसिस रोग होता है।
- हरे कबूतर या हरियल पक्षी, नागौर उच्च भूमि क्षेत्र व सरिस्का अभ्यारण में पाए जाते हैं जो कभी जमीन पर पैर नहीं रखते हैं।
- कूबड़ पट्टी = पुष्कर ( अजमेर )और मेड़ता ( नागौर ) के मध्य का भाग।
लूनी बेसिन/गोडवार प्रदेश :-
- यह प्रदेश जोधपुर ग्रामीण, अजमेर, बालोतरा, बाड़मेर, सांचौर, ब्यावर और नागौर में विस्तारित है।
- क्षेत्र में लवणीय मृदा पाई जाती है।
- इस क्षेत्र में छप्पन की पहाड़ियां, मोकलसर से सिवाना ( बालोतरा ) तक विस्तारित है, जिसमें सर्वाधिक ग्रेनाइट पाया जाता है।
- इन पहाड़ियों में बालोतरा में नाकोड़ा पर्वत है जो जैनियों का धार्मिक स्थल है।
- पिपलूद ( सिवाना, बालोतरा ) के हल्देश्वर नामक पहाड़ को ”मारवाड़ का लघु माउंट आबू” कहते हैं।
- जालौर में गुंबदाकर ग्रेनाइट पहाड़ियां इन्सेलबर्ग के रूप में जानी जाती है।
- सांचौर में लूनी नदी का बाढ़ मैदान रेल/रेला/नेहड कहलाता है।
- चट्टानी प्रदेशों में एकत्रित जल तल्ली या पोखर कहलाता है।
- खारे पानी की बड़ी झील प्लाया तथा छोटी झील रन या टाट कहलाती है।
- जल सूखने के बाद नीचे उपजाऊ मिट्टी रह जाती है जिसे खड़ीन या मरोह कहते हैं, जिसमें अनाज पाया जाता है जो बझेड कहलाता है।
- करौली में पान की खेती को बजेड़ा कहते हैं।
- पर्वतों के मध्य एकत्रित जल को बालसन कहते हैं।
- गांव के बाहर दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बनाया गया तालाब नाड़ी कहलाता है। इसे सर्वप्रथम राव जोधा ने 1520 ई में बनवाया।
- इस क्षेत्र में पथरीला चट्टानी मरुस्थल हम्मादा कहलाता है।
- इस क्षेत्र में रेतीला मरुस्थल इर्ग कहलाता है।
- इस क्षेत्र में पथरीली एवं रेतीली मिट्टी का मिश्रत क्षेत्र रेग कहलाता है।
- मरुस्थल क्षेत्र में किसी झील के चारों तरफ हरियाली विकसित हो जाती है, उसे नखलिस्तान कहते हैं जैसे कोलायत झील, बीकानेर।
- मरुस्थलीय क्षेत्र के अंतर्गत जहां पर्वतीय क्षेत्र होता है वह बजादा कहलाता है इन क्षेत्र के निम्न भाग में जल समाप्त हो जाता है।
- टांका = कुंड।
- ढांढ = विशिष्ट लवणीय क्षेत्र।
अरावली पर्वतमाला :-
- अरावली पर्वतमाला की उत्पत्ति आध महाकल्प के प्रीकैंब्रिरियन काल में हुई।
- अरावली पर्वतमाला का विस्तार 23०20′ उत्तरी अक्षांश से 28०20′ व 72०10′ पूर्वी देशांतर से 77० पूर्वी देशांतर तक है।
- अरावली पर्वतमाला बलिया का तथा अवशिष्ट पर्वतमाला है तथा यह USA अप्लेशियन पर्वत व मध्य प्रदेश की विंध्याचल पर्वतमाला के समकालीन है।
- राजस्थान का एक योजन प्रदेश है जिसे राजस्थान की जीवन रेखा भी कहते हैं।
- अरावली पर्वतमाला को विष्णु पुराण में ”परिपत्र” तथा भौगोलिक भाषा में ”मेरू” और राजस्थानी भाषा में आड़ा-वाटा कहते हैं।
- इस पर्वतीय प्रदेश में क़्वार्टजाइट की प्रधानता है।
- अरावली पर्वतमाला की प्रारंभ में ऊंचाई 2700/2800 मीटर थी तथा यह वर्तमान में 930 मीटर है।
- अरावली पर्वतमाला की ऊंचाई घटना के कारण= अरावली का गोंडवाना लैंड का हिस्सा होना तथा अरावली का अनाच्छादन ( अपरदन और अपक्षय ) होना।
- अरावली पर्वतमाला भारत के सापेक्ष प्रायद्वीपीय पठार का हिस्सा है तथा विश्व के सापेक्ष गोंडवाना लैंड का हिस्सा है क्योंकि गोंडवाना लैंड में पर्वत निर्माण की घटना नहीं होती है तथा यह भूकंप की दृष्टि से सुरक्षित प्रदेश है।
- अरावली का सर्वप्रथम भूगर्भिक अध्ययन हेरोन महोदय द्वारा किया गया।
- अरावली पर्वतमाला में आग्नेय ( ग्रेफाइट ) प्रकार की चट्टाने पाई जाती है।
- अरावली पर्वतमाला में धात्विक खनिज पाए जाते है।
भारत में विस्तार :-
- अरावली पर्वतमाला का विस्तार अरब सागर के मिनीकोय दीप से रायसीना हिल्स, दिल्ली तक है।
- अरावली का स्थलीय विस्तार खेड़ब्रह्म, पालनपुर, गुजरात से रायसीना हिल्स, दिल्ली तक है।
- अरब सागर को अरावली का पिता कहते हैं।
- अरावली को राजस्थान की जल विभाजक रेखा कहते हैं।
- अबुल फजल ने ”अरावली को ऊंट की गर्दन” कहा है तथा कर्नल जेम्स टॉड अरावली को ”राजपूताना की सुरक्षा दीवार” कहा है।
राजस्थान में विस्तार :-
- राजस्थान में अरावली का विस्तार आबू रोड, सिरोही से खेतड़ी, नीमकाथाना तक है।
- अरावली पर्वतमाला की कुल लंबाई 692 किलोमीटर है तथा राजस्थान में लंबाई 550 किलोमीटर है।
- अरावली पर्वतमाला का क्षेत्रफल 9% तथा जनसंख्या 10% है।
- इस क्षेत्र में 50 से 80 सेंटीमीटर तक वर्षा होती है।
- अरावली पर्वतमाला की दिशा दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की और है।
- अरावली पर्वतमाला में स्थानांतरित कृषि ( वालरा, दाजिया, चीमाता ) की जाती है तथा मुख्य फसल मक्का है।
- राजस्थान में अरावली पर्वतमाला की सर्वाधिक ऊंचाई सिरोही में, सर्वाधिक विस्तार उदयपुर में तथा सर्वाधिक कटी फटी या संकीर्णता अजमेर में है।
अरावली की पहाड़ियों के स्थानीय नाम :-
- भाकर – पूर्वी सिरोही की पहाड़ियाँ।
- मगर – उत्तर-पश्चिम उदयपुर की पहाड़ियाँ।
- मगरी – उदयपुर और चित्तौड़गढ़ में काम ऊंचाई की पहाड़ियाँ।
- गिरवा – उदयपुर में गोलाकार, तश्तरी नुमा तेज ढाल वाली पहाड़ियाँ।
- देशहरो – उदयपुर में रागा और जरगा पर्वत के मध्य स्तिथ हरा भरा भाग।
अरावली पर्वतमाला का उपविभाजन :-
उत्तरी अरावली :- औसत ऊंचाई= 450 मीटर
प्रमुख चोटियाँ :-
- रघुनाथगढ़, सीकर = 1055 मी
- मालखेत, सीकर = 1052 मी
- लोहागर्ल, झुंझुनू = 1051 मी
- भेजागढ़, झुंझुनू = 997 मी
- खोह, जयपुर = 920 मी
- भैरोच, अलवर = 792 मी
- बरवाड़ा, जयपुर ग्रामीण = 786 मी
- बाबई, नीम का थाना = 780 मी
- बिलाली, कोटपूतली-बहरोड = 775 मी
- बैराठ, जयपुर ग्रामीण = 704 मी
- सरिस्का, अलवर = 677 मी
मध्य अरावली :- औसत ऊंचाई 550 मी
प्रमुख चोटियाँ :-
- टॉडगढ़/गोरमजी , ब्यावर = 934 मी
- तारागढ़, अजमेर = 870 मी
- नागपहाड़, अजमेर = 795 मी
दक्षिण अरावली :- औसत ऊंचाई = 1000 मी
प्रमुख चोटियाँ :-
- गुरुशिखर, सिरोही = 1722 मी
- सेर, सिरोही = 1597 मी
- दिलवाडा, सिरोही = 1442 मी
- जरगा, उदयपुर = 1431 मी
- अचलगढ़, सिरोही = 1380 मी
- आबू खंड, सिरोही = 1295 मी
- कुंभलगढ़, राजसमंद = 1224 मी
- ऋषिकेश, सिरोही = 1017 मी
- कमलनाथ, उदयपुर = 1000 मी
- सज्जनगढ़, उदयपुर = 938 मी
अरावली के पठार :-
- कासन का पठार :- अलवर
- काकनवाड़ी का पठार :- अलवर
- उड़ीया का पठार :- सिरोही = 1360 मी – यह राजस्थान का सबसे ऊंचा पठार है।
- आबू का पठार :- सिरोही = 1200 मी
- मेस का पठार :- चित्तौड़गढ़ = 620 मी- यह एक अपरदित पठार है, तथा इस पर चित्तौड़गढ़ दुर्ग स्थित है।
- मानदेसरा का पठार :- चित्तौड़गढ़
- लसाडिया का पठार :- सलूंबर
- पोतवार का पठार :- जयपुर से अलवर के मध्य
- भोराट का पठार :- कुंभलगढ़, राजसमंद से गोगुंदा, उदयपुर के मध्य इसे राजस्थान का जल विभाजक या जलसंभर भी कहते हैं।
- ऊपर माल का पठार :- बिजोलिया से भैंसरोडगढ़, चित्तौड़ के मध्य इस त्रियक का पठार भी कहते हैं।
- भोमट का पठार :- इसका विस्तार सिरोही, उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा तक है।
अरावली की पहाड़ियाँ :-
- स्वर्णागिरी की पहाड़ियां, थईयात की पहाड़ियां और त्रिकुट की पहाड़ियाँ :- जैसलमेर
- चिड़ियाटूक की पहाड़ियां ( मेहरानगढ़ दुर्ग ), मसूरिया की पहाड़ियां :- जोधपुर ग्रामीण
- छप्पन की पहाड़ियां :- बालोतरा
- सुवर्णगिरि की पहाड़ियां, जसवंतपुरा की पहाड़ियां :- जालौर = यहां पर इसराना भाकर , रोजा भाकर , डोरा पर्वत , झारोल भाकर और सुंधा पर्वत स्थित है।
- नानी की पहाड़ियां :- पाली = यहाँ सोजत का किला स्तिथ है।
- सारण की पहाड़ियां :- पाली = यहाँ राव चंद्र सेन के छतरी है।
- सेन्द्र की पहाड़ियां :- पाली = इसकी आकृति सांप के फण जैसी है।
- नाग की पहाड़ियां :- अजमेर
- मेरवाड़ा की पहाड़ियां :- अजमेर = यह मारवाड़ के मैदान को मेवाड़ के पठार से अलग करती है।
- छप्पन पर्वत :- उदयपुर
- मालखेत की पहाड़ियां, हर्ष/हर्षनाथ की पहाड़ियां, जीणमाता/ रेवासा की पहाड़ियां, खंडेला की पहाड़ियां :- सीकर
- बैराठ की पहाड़ियां, मनोहर की पहाड़ियां, आमेर की पहाड़ियां, नाहरगढ़ की पहाड़ियां, सेबर की पहाड़ियां, ईगल की पहाड़ियां ( जयगढ़ दुर्ग ) :- जयपुर
- भानगढ़ की पहाड़ियां, उदयनाथ की पहाड़ियां, काकरा-बड़ोद की पहाड़ियां :- अलवर
- मानी की पहाड़ियां, बंशी पहाड़पुर की पहाड़ियां, कनकाचल एवं आदिबद्री की पहाड़ियां :- भरतपुर
- त्रिकूट पर्वत :- करौली = त्रिकूट पर्वत पर कैलामाता मंदिर स्तिथ है।
- खमनौर की पहाड़ियां, दिवेर की पहाड़ियां, बिजराल की पहाड़ियां :- राजसमंद
- देवगिरि की पहाड़ियां :- दौसा
- चौथ का बरवाड़ा :- सवाई माधोपुर
अरावली के दर्रे :-
- राजसमंद :- हाथीगुड़ा दर्रा, कच्छवाली दर्रा, पीपलात्री दर्रा, चिरवा घाट, गोरम घाट, कामली घाट
- ब्यावर :- श्योपुर दर्रा, सुराघाट दर्रा , परवेरिया दर्रा, बर दर्रा ( ब्यावर को मेवाड़ से अलग करती है )
- उदयपुर :- हाथी दर्रा, केवड़ा की नाल, फुलवारी की नाल, देबारी दर्रा
- पाली :- सोमेश्वर की नाल, पगल्या जिलवा की नाल ( मेवाड़ को गुजरात से जोड़ती है ), देसूरी की नाल ( सबसे सकरी नाल, मेवाड़ की मारवाड़ से जोड़ती है )
पूर्वी मैदान :-
- इसमें पूर्वी राजस्थान और दक्षिणी राजस्थान में नदी निर्मित मैदान को शामिल किया है।
- इसकी उत्पत्ति नवजीवी महाकल्प के प्लीस्टोसीन काल में हुई।
- इसका निर्माण नदियों के निक्षेप या जमाव से हुआ है।
- मिटटी = जलोढ़ मिटटी/कांप मिटटी/दोमट मिटटी/चिकनी मिटटी = एल्फिसोल मृदा
- क्षेत्रफल = 23%
- जनसँख्या = 39%
- जनघनत्व = सर्वाधिक
- वर्षा = 60 से 90 सेंटीमीटर
- वनस्पति = पतझड़
- नदियाँ = चम्बल, बनास, माही, बाणगंगा
- कृषि = गहन कृषि = खाद्यान्न
- यह सर्वाधिक कृषि योग्य प्रदेश है इसलिए इसे राजस्थान का अन्न का कटोरा कहते है।
पूर्वी मैदान का उपविभाजन :-
चम्बल बेसिन :- कोटा से धौलपुर तक
- क्षेत्रफल = 4500 वर्ग किलोमीटर
- यह डाकुओं की शरणस्थली है इसलिए इसे ”डांग क्षेत्र” भी कहते है।
- बीहड़/उत्खात स्थलाकृति = नदी द्वारा निर्मित गहरे खड्डो को बीहड़ कहते है।
- क्षेत्रफल के अनुसार सर्वाधिक बीहड़ सवाईमाधोपर में है।
- प्रतिशत के अनुसार सर्वाधिक बीहड़ धौलपुर में है।
- डांग की रानी = करोली
- बीहड़ पट्टी = 480 km = कोटा से यमुना
- चंबल नदी सर्वाधिक अवनालीका अपरदन करती है जिसके परिणाम स्वरुप उत्खात भूमि का निर्माण होता है यह अपरदन सबसे अधिक हानिकारक होता है जिससे भूमि कृषि योग्य नहीं रहती है।
- चंबल नदी यमुना से मिलने से पूर्व विस्तृत गोर्ज का निर्माण करती है।
माही बेसिन :- बासवाड़ा, प्रतापगढ़, डूंगरपुर
- महुआ के वृक्षों की प्रधानता के कारण, इस बेसिन को प्राचीन पुष्प प्रदेश के नाम से जाना जाता है। इन वृक्षों में रेड फ्लाइंग स्कवीरल पेटोरिस्टा एलबीवेडर ( उड़न गिलहरी ) पायी जाती है।
- यह क्षेत्र अधिक गहराई तक विच्छेदित होने के कारण इस भू भाग को बांगड़ क्षेत्र के नाम से जाना जाता है।
- माही नदी को वागड़/कंठाल/आदिवासियों की गंगा कहते है।
- माही बेसिन में बांस के वृक्षों की अधिकता है तथा यह लोमी मृदा पायी जाती है, जो मक्का की कृषि के लिए उपयोगी है।
- छप्पन का मैदान = प्रतापगढ़ तथा बांसवाड़ा के मध्य क्षेत्र में छप्पन नदी नालो का समूह।
- कंठाल = बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ के मध्य नदी किनारे क्षेत्र।
- मेवल = बांसवाड़ा और डूंगरपुर के मध्य नदी किनारे क्षेत्र।
बनास बेसिन :-
बनास बेसीन में दो मैदानों का निर्माण होता है।
1 मेवाड़ का मैदान ( दक्षिणी भाग ) = भीलवाड़ा, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, शाहपुरा
इसमें खैराड़ – जहाजपुर तहसील, शाहपुरा के क्षेत्र को खैराड़ कहते है।
इसी के अंतर्गत पिडमांट का मैदान आता है।
पिडमांट का मैदान = राजसमंद में नदी द्वारा अपरदित निर्जन पठारी क्षेत्र।
2 मालपुरा – करौली का मैदान ( उत्तरी भाग ) = केकड़ी , टोंक, सवाईमाधोपुर
माल खैराड़ = इसमें टोंक जिले का अधिकांश क्षेत्र आता है।
बाणगंगा बेसिन :- जयपुर ग्रामीण, दौसा, कोटपूतली-बहरोड,भरतपुर
यहाँ नदी निर्मित मैदान को रोहि का मैदान कहते है तथा यह सबसे उपजाऊ मैदान है।
दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश/हाड़ौती का पठार :- कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़
- इसे दक्कन का पठार, मालवा का पठार, प्रायद्वीपीय पठार, हाड़ौती का पठार भी कहते है।
- इसका निर्माण ज्वालामुखी ( दरारी उदगार ) से हुआ है।
- उत्पत्ति = मध्यजीवी महाकल्प के क्रिटिशियस काल में हुआ।
- यह भारत के सापेक्ष प्रायद्वीपीय पठार का हिस्सा है तथा विश्व के सापेक्ष गोंडवाना लेंड का हिस्सा है।
- क्षेत्रफल = 7%
- जनसंख्या = 10%
- वर्षा = 90 से 120 cm
- ढाल = दक्षिण से उत्तर
- इस प्रदेश में सर्वाधिक अधर प्रवाह की नदियाँ पायी जाती है इसलिए इस प्रदेश को अस्पष्ट अधर प्रवाह का क्षेत्र कहते है।
- इस क्षेत्र में काली मिटटी पायी जाती है, काली मिटटी की जल ग्रहण क्षमता सर्वाधिक होती है तथा लोहांश की उपस्तिथि के कारण इस मिटटी का रंग कला होता है।
- चट्टानें = आग्नेय ( बेसाल्ट ) इसका अयस्क बॉक्साइड (Al) है।
- कृषि = व्यापारिक फसले ( गन्ना, मसाले )
- वनस्पति = सागवान
- यह प्रदेश मसालों वाली फसलों के जाना जाता है।
- औसत ऊंचाई = 500 मीटर
- यह प्रदेश अरावली पर्वतमाला तथा विध्यांचल पर्वतमाला के मध्य सक्रांति प्रदेश के नाम से जाना जाता है।
- इस प्रदेश में उपरमाल का पठार ( बिजौलिया से भैसरोड़गढ़ तक विस्तारित ) तथा मेवाड़ का पठार आता है।
हाड़ौती के पठार को 2 मुख्य तथा 5 उपभागों में विभाजित किया गया :-
मुख्य भाग :- दो
- विंध्यन कगार
- दक्कन का पठार
उपभाग :- पांच
- अर्धचन्द्राकार की पहाड़ियां
- शाहबाद उच्च भमि क्षेत्र
- नदी निर्मित मैदान / चम्बल का मैदान
- झालावाड़ का पठार
- डग-गंगधर प्रदेश
1 विंध्यन कगार क्षेत्र :-
- बनास और चम्बल नदियों के मध्य बलुआ पत्थरों से निर्मित प्रदेश है।
- इसमें चुना पत्थरों, बलुआ तथा स्लेटी पत्थरों की प्रधानता है।
2 दक्कन का पठार :- कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़
इस क्षेत्र में चम्बल नदी, कालीसिंध नदी तथा पार्वती नदी के द्वारा कोटा जिले में ”त्रिकोणीय जलोढ़ मैदान” का निर्माण करती है।
A अर्धचन्द्राकार की पहाड़ियां :-
इन पहाड़ियों का विस्तार रामगढ ( बारां ) से झालावाड़ तक है । इन पहाड़ियों को अलग – अलग स्थानों पर अलग – अलग नामों से जाना जाता है।
a. रामगढ़ की पहाड़ियां ;- बारां
इनकी आकृति घोड़े के नाल के जैसी है अतः इन्हे हॉर्स शू की पहाड़ियां भी कहते है।
b. बूंदी की पहाड़ियां :-
इन्हे मुकुन्दवाडा की पहाड़ियां तथा आड़ावाल की पहाड़ियां ( सवाई माधोपुर ) भी कहते है। इसकी सबसे ऊंची चोटी सातुर ( 353 मी ) है। इन पहाड़ियो में निम्न दर्रे है –
बूंदी दर्रा, रामगढ-खटगढ़ दर्रा, जेतवास दर्रा, लाखेरी दर्रा
c. मुकुंदरा की पहाड़ियां :- कोटा, झालावाड़
इसकी सबसे ऊंची चोटी चांदबाड़ी ( 517 मी ) है।
B शाहबाद उच्च भूमि :-
इसे काली हांड़ी क्षेत्र भी कहते है तथा यहाँ सहरिया जनजाति निवास करती है।
C नदी निर्मित मैदान / चम्बल का मैदान :- कोटा, बारां
यहाँ कोटा में स्तिथ पहाड़ियों को कुंडला की पहाड़ियां कहते है।
D झालावाड़ का पठार :- झालावाड़
E डग-गंगधर प्रदेश :- दक्षिण-पश्चिम झालावाड़
राजस्थान का सामान्य परिचय
रामगढ़ क्रेटर :-
- इसको 200वां क्रेटर की मान्यता 2021 में मिली है।
- यह राज्य का प्रथम जियो हेरिटेज स्थल है।
- यह 200 मीटर ऊँची अँगूठीनुमा संरचना में विस्तारित है।
राजस्थान में 12 भू-विरासत स्थल की पहचान की जा चुकी है :-
राजस्थान में 2001 में GSI के द्वारा 10 भू-विरासत स्थल की पहचान की गयी जो निम्न है :-
- नेफ्लाइन साइनाइट = किशनगढ़, अजमेर
- सेंदरा ग्रेनाइट = ब्यावर
- बर काग्लोमरेट = ब्यावर
- जोधपुर ग्रुप मालाणी आग्नेय सुइट कॉन्टेक्ट = जोधपुर
- वेल्डेड टफ = जोधपुर
- ग्रेट बॉउंड्री फॉल्ट = सत्तूर, बूंदी
- स्ट्रॉमेटोलाइट पार्क = भोजून्दा, चित्तौड़गढ़
- आंकल वुड फॉसिल्स पार्क = जैसलमेर
- राजपुरा-दरीबा = राजसमंद
- स्ट्रॉमेटोलाइट पार्क = झामर-कोटड़ा, उदयपुर
इसके बाद 2006 में दो प्रमुख स्थलों की पहचान की गई :-
- रामगढ़ उल्कापिंड क्रेटर = बारां
- जावर = उदयपुर