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Rajasthan की प्रमुख प्राचीन सभ्यताएँ : राजस्थान का इतिहास

Rajasthan का इतिहास :-

  • History ( इतिहास ) शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा ( यूनानी ) के Historia से हुयी है जिसका अर्थ है, शोध/जांच-पड़ताल करके ज्ञान प्राप्त करना।
  • इतिहास की परिभाषा = अतीत की ऐसी महत्वपूर्ण घटना जिसके साक्ष्य मौजूद हो, का क्रमबद्ध अध्ययन।
  • विश्व इतिहास के जनक हेरोडोटस है,इनकी पुस्तक ”हिस्टोरिका” है।
  • भारत इतिहास के जनक वेद व्यास है, इनकी पुस्तक ”महाभारत ( जय संहिता )” है।
  • Rajasthan इतिहास के जनक ले. जेम्स टॉड है, इनकी पुस्तक ”द एनाल्स एंड एंटीक्वीटीज ऑफ़ राजस्थान” है।

प्राचीन Rajasthan :-

  • Rajasthan में पुरातत्व सर्वेक्षण कार्य को सर्वप्रथम 1871 ईस्वी में ए.सी.एल. कार्लाइल ने प्रारम्भ किया।
  • भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की स्थापना अलेक्जेंडर कनिंघम ने 1861 ईस्वी में की।

Rajasthan की प्रमुख प्राचीन सभ्यताएँ :-

Rajasthan में नदियों के किनारें सभ्यताएँ प्राप्त हुयी।

  1. पाषाणकालीन स्थल
  2. ताम्रकालीन स्थल
  3. कांस्ययुगीन स्थल
  4. लौहयुगीन स्थल

सिंधु सभ्यता/हड़प्पा सभ्यता :-

  • सिंधु नदी हिमालय पर्वत से निकलकर पंजाब तथा सिंधु प्रदेश से बहती हुई अरब सागर में गिरती है, इस नदी के तटों पर विकसित सभ्यता को सिंधु सभ्यता कहा जाता है।
  • सिंधु सभ्यता की खोज 1921 ईस्वी में दयाराम साहनी ने की तथा इसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है।
  • सिंधु घाटी सभ्यता सभ्यता को ”प्रथम नगरीय सभ्यता” एवं ”कांस्ययुगीन सभ्यता” भी कहते है।
  • रेडियो कार्बन-14 विधि द्वारा हड़प्पा सभ्यता की तिथि 2500 ई.पू. से 1750 ई.पू. है।
  • इसका विस्तार उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने तक और पश्चिम में मकरान, समुद्रतट से लेकर पूर्व में मेरठ तक था।
  • इसके प्रमुख स्थल = हड़प्पा( मोंटगोमरी,पंजाब,पाकिस्तान ), मोहनजोदड़ो ( पाकिस्तान ), सुतकागेण्डोर( पाकिस्तान ), चन्हूदडो व कोटदीजी  (पाकिस्तान),  लोथल, कालीबंगा ( राजस्थान ), रोपड़ ( पंजाब ), आलमगीरपुर ( मेरठ ), सुरकोटड़ा ( गुजरात ), धोलावीरा ( गुजरात ), राखीगढ़ी ( हरियाणा ), रंग महल ( राजस्थान ), दैमाबाद ( महाराष्ट्र )
  • सिंधु सभ्यता के राजस्थान में उत्खनन स्थल = कालीबंगा( हनुमानगढ़ ), पीलीबंगा( हनुमानगढ़ ), करणपुर( हनुमानगढ़ ), रंगमहल( श्रीगंगानगर ), तरखानेवाला(गंगानगर)

Rajasthan की प्रमुख प्राचीन सभ्यताएँ :-

1 कालीबंगा :-

  • इसे कांस्ययुगीन सभ्यता, नगरीय सभ्यता, दीनहीन की बस्ती तथा हड़प्पा समकालीन सभ्यता भी कहते हैं।
  • अमलानंद घोष के अनुसार यह Rajasthan के हनुमानगढ़ और बीकानेर जिले में विस्तृत है।
  • कालीबंगा की सर्वप्रथम जानकारी इटली के डॉक्टर एल.पी. टेस्सीटोरी ने दी थी।
  • कालीबंगा सभ्यता की सर्वप्रथम खोज 1952 में अमलानंद घोष ने की थी।
  • कालीबंगा सभ्यता का उत्खनन 1961-69 में बी.के. थापर, बी. वी. लाल, एम. डी. खर्रे तथा जगपति जोशी ने किया था।
  • कालीबंगा सभ्यता भारत का पहला पुरातात्विक स्थल है जिसका स्वतंत्रता के बाद पहली बार उत्खनन किया गया था।
  • कालीबंगा सिंधी भाषा या पंजाबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ ”काले रंग की चूड़ियां” होता है।
  • कालीबंगा सभ्यता आद्य ऐतिहासिक काल ( कांस्ययुगीन ) की है।
  • यह सभ्यता कोटदीजी सभ्यता के समान है तथा प्राक हड़प्पाकालीन, हड़प्पा के समकालीन तथा पश्च हड़प्पा कालीन सभ्यता है।
  • यह सभ्यता घग्घर नदी के किनारे स्थित है तथा प्राचीन काल/ऋग्वेद में इसे सरस्वती नदी भी कहते थे।
  • ऑरेल स्टैन ने ”ए सर्वे वर्क ऑफ़ एनसियेण्ट साइट्स अलोंग दी लॉस्ट सरस्वती रिवर” नामक लेख लिखा।
  • यह सभ्यता मातृ सत्तामक है तथा यहां एकल परिवार प्रणाली देखने को मिली है।

कालीबंगा सभ्यता का उत्खनन:-

  • कालीबंगा सभ्यता का उत्खनन पांच स्तरों में हुआ। प्राक हड़प्पा कालीन ( ग्रामीण संस्कृति = प्रथम और द्वितीय स्तर ), हड़प्पा समकालीन ( नगरीय संस्कृति = तृतीय, चतुर्थ और पंचम स्तर )और पश्च हड़प्पा ( पतन )।
  • यहां के निवासी खेती व पशुपालन अर्थात मिश्रित कृषि से परिचित थे।
  • यहां के निवासी संयुक्त फसल ( एक साथ एक से अधिक फसल बोना = गेहूँ, जौ व चावल। ) से भी परिचित थे।
  • यहाँ से प्राप्त मृदभांड को लाल धरातल पर काले रंगों की सुंदर ज्यामिति से अलंकृत किया गया है।
  • यहां के खेतों से हल रेखाओं की जानकारी मिली अर्थात यहां से विश्व में प्रथम बार रेखा गणित की जानकारी मिली।
  • सिंधु सभ्यता के किसी भी स्थल से हल के प्रमाण नहीं मिले परंतु कालीबंगा से लकड़ी का बना हुआ हल का खिलौना प्राप्त हुआ।
  • यहां से विश्व में प्रथम बार परकोटे के बाहर जुते हुए खेत के प्रमाण मिले हैं।
  • यहां के नगर समकोण/चैस बोर्ड पद्धति/शतरंजनुमा/जालीनुमा पद्धति से बसाए गए थे।
  • यहां के लोगों ने नगर को दो भागों में विभाजित किया ।
  • पश्चिमी टीला = यहां पर दुर्गा बनाए गए।
  • पूर्वी टीला = यहां पर शहर बसाया गया।
  • यहाँ के भवन पहले कच्ची ईंटों से व बाद में पक्की ईटों से बने हुए मिले, इन ईटों की लंबाई चौड़ाई और ऊंचाई 30 * 15 * 7.5 के रूप में थी।
  • कालीबंगा से प्राप्त प्राक हड़प्पा कालीन मकान कच्ची ईटों से बने हुए हैं इसलिए इसे दिन-हिन की बस्ती भी कहा जाता है।
  • यहां पर स्नानागार मिले हैं जिनमें से पानी निकालने की नाली पहले लकड़ी की बनी हुई थी बाद में इस नाली को पक्की ईटों से बना दिया गया।
  • हड़प्पाकालीन कालीबंगा नगर की सड़के समकोण पर काटती थी, इसलिए यहां पर बने मकानों की पद्धति को ऑक्सफोर्ड पद्धति/जाल पद्धति/ग्रिड पद्धति/चेम्स फोर्ड पद्धति भी कहते हैं।
  • यहां के मकान के दरवाजे सड़क की ओर न खुलकर पीछे की ओर खुलते थे।
  • यहां के भवन की फर्श अलंकृत एवं सजावटी ईटों से बनी हुई है।
  • यहां की ईटों का अनुपात 4:2:1 था।
  • यहां के भवनों में दरार के अवशेष मिले अर्थात विश्व में प्रथम बार भूकंप की जानकारी मिली।
  • यहां के निवासियों ने घर के मुख्य द्वार के सामने 7 फीट ऊंची दीवार बनाई।
  • यहां के लोग बिल्ली, ऊंट, हिरण, कुत्ता तथा बाघ से परिचित थे
  • यहां के लोग घोड़ा, गन्ना, लोहा, सोना और चांदी से अपरिचित थे।
  • यहां से हमें 7 हवन कुंड/यज्ञ वेदिका/अग्नि वैदिका तथा बलि की जानकारी के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
  • यहाँ से प्राप्त सिक्के पर महिला कुमारी देवी का चित्र अंकित है, जिससे मातृसत्तात्मक व्यवस्था की जानकारी मिलती है।
  • यहां से उस्तरा, मिटटी का पैमाना, तंदूर का चूल्हा, कांस्य का दर्पण या कांच, लकड़ी की चारपाई, लकड़ी का बच्चों का हल का खिलौना, मेलों के प्रमाण, कुमार देवी की मुद्रा, बाघ की मुद्रा, बेलनाकार मुहरे, मेसोपोटामिया से व्यापारिक संबंध, 6 वर्ष के मृत बालक की खोपड़ी, घर का अलंकृत फर्श या आंगन आदि प्राप्त हुए हैं।
  • यहाँ से स्वस्तिक का चिन्ह मिला है।
  • यहाँ से विश्व में प्रथम बार शल्य चिकित्सा की जानकारी प्राप्त हुई।
  • यहां से विश्व में प्रथम बार लकड़ी और ईंटों की नालियाँ मिली।
  • यहां से नगर निगम की जानकारी प्राप्त हुई।
  • यहां से साथ हवन कुंडों में हिरण की हड्डियां मिली और हवन कुंड से यहां के निवासियों के धार्मिक जीवन के बारे में जानकारी मिली।
  • यहां से मेसोपोटामिया ( ईरान ) सभ्यता का उस्तरा, तंदूर का चूल्हा व बेलनाकार मुहरें मिली अर्थात यहां के निवासियों का मेसोपोटामिया सभ्यता के साथ व्यापारिक संबंध था।
  • यहां के एक बालक में हाइड्रोस्फलीश रोग मिला और इसका उपचार शल्य विधि से किया गया था।
  • यह विश्व की एकमात्र सभ्यता है जिसमें नालियों का निर्माण लकड़ी व ईंटो से किया गया।
  • यहां के निवासी घरों की छत से पानी नीचे उतरने के लिए वृक्ष के खोखले तने से निर्मित नालियों का प्रयोग करते थे।
  • यहां के लोग कलश शवाधान, आंशिक शवाधान व पूर्ण शवाधान से परिचित थे।
  • यहाँ से अंडाकार कब्र के अवशेष मिले, जिसे ”चिरायु कब्र” नाम दिया।
  • यहां के लोग सर्वाधिक कलश शवाधान करते थे।
  • यहां के लोग पुनः जन्म में विश्वास करते थे।
  • कालीबंगा सभ्यता में पुरोहित का स्थान प्रमुख था।
कालीबंगा संग्रहालय :-

राज्य सरकार द्वारा 1985-86 में कालीबंगा से प्राप्त अवशेषों के संरक्षण हेतु संग्रहालय की स्थापना की गयी।

कथन :-
  1. आनंद घोष के अनुसार कालीबंगा सभ्यता का विकास सोंथी सभ्यता के लोगों ने किया।
  2. स्टुअर्ट पिग्गट के अनुसार हड़प्पा व मोहनजोदड़ो को हड़प्पा साम्राज्य की जुड़वा राजधानियां बताया और हड़प्पा की संभावित तीसरी राजधानी कालीबंगा को बताया।
  3. दशरथ शर्मा ने कालीबंगा को सिंधु सभ्यता की तीसरी राजधानी कहा तथा कालीबंगा को सिंधु सभ्यता का पांचवा नगर भी बताएं।
  4. यहां से एक मृण मूर्ति मिली, जिसे इतिहासकारों ने पशु की मूर्ति बताया परंतु B V लाल ने इसे घोड़े की मृण मूर्ति बताया अर्थात B V लाल के अनुसार यहां के निवासी घोड़े से परिचित थे।
कालीबंगा सभ्यता के पतन का कारण:-
  1. रईकश अनुसार कालीबंगा सभ्यता का पतन भूकंप से हुआ।
  2. K U R आर कैनेडी के अनुसार इसका पतन संक्रामक रोग से हुआ।
  3. अमलानंद घोष के अनुसार इसका पतन जलवायु परिवर्तन से हुआ।
  4. टेल्स के अनुसार इसका पतन नदियों के मार्ग बदलने के कारण हुआ।
  5. डॉ गोपीनाथ शर्मा के अनुसार इसका पतन भूकंप से हुआ।

2 आहड़ सभ्यता :- उदयपुर

  • यह Rajasthan के उदयपुर शहर के आहड़ कस्बे से प्राप्त हुयी है।
  • यह सभ्यता 1900 से 1200 ईस्वी पूर्व की है।
  • इस सभ्यता की खोज 1953 ईस्वी में अक्षय कीर्ति व्यास ने की, तथा उत्खनन 1956 ईस्वी में रतनचंद्र अग्रवाल ने किया।
  • इसका वृहत उत्खनन 1961 ईस्वी में रतनचंद्र अग्रवाल, V. N. मिश्र, H. D. सांकलिया ने किया।
  • इसका सर्वाधिक उत्खनन पूना विश्व विद्यालय के प्रोपेसर H. D. सांकलिया ने किया।
  • इसे ताम्रनगरी सभ्यता, बनास संस्कृति, मृतकों का टीला ओट मृदभांडों की संस्कृति भी कहते है।
  • 10वीं शताब्दी मे इसे आघाटपुर के नाम से जाना जाता था।
  • स्थानीय लोग इसे धुलकोट के नाम से भी पुकारते थे, जिसका अर्थ ”रेत का टीला” है ।
  • H. D. सांकलिया के अनुसार आहड़ सभ्यता का मुख्ता विकास बनास नदी वह बनास नदी की सहायक नदियों के किनारे हुआ इस कारण एचडी सांखलिया ने आहड़ सभ्यता को बना संस्कृति कहा।
  • यह सभ्यता ग्रामीण सभ्यता थी तथा इसमें पितृसत आत्मक परिवार व्यवस्था दिखाई दी।
  • इस सभ्यता के लोग कच्ची ईटों से मकानों का निर्माण करते थे।
  • यहां पर कुछ मकानों में दो या दो से अधिक चूल्हे और एक मकान में तो 6 चूल्हे देखे गए, इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यहां संयुक्त परिवार व्यवस्था थी।
  • इस सभ्यता में मछली, बकरी व हिरण की हड्डियों के अवशेष मिले हैं इसका अर्थ है यहां के लोग शाकाहारी के साथ-साथ मांसाहारी भी थे।
  • यहाँ से दो मुँह के चूल्हे, सिलबट्टे और कढ़ाई, लाल-भूरे-काले रंग के मृदभांड( मिटटी के बर्तन ), अनाज रखने के बड़े मृदभांड ( स्थानीय भाषा में गोरे व कोठे कहते है। ), छपाई के ठप्पे, आटा पीसने की चक्की, चित्रित बर्तन, ताम्बे के उपकरण, मिटटी के आभूषण, तांबा गलाने की भट्टियाँ, मातृदेवी व बैल की मृणमूर्ति, शरीर से मेल छुड़ाने का उपकरण ( झाबा ) आदि प्राप्त हुए है।
  • यहाँ से पूजा करने की धूप-दानियाँ ( ईरानी शैली ) मिली है जिसका अर्थ है यहां के लोगों का ईरान से व्यावसायिक संबंध था।
  • यहां से बिना हत्थे के छोटे जलपात्र मिले हैं, जो सिंधु सभ्यता से भी नहीं पाए गए। ऐसे जलपात्र पूर्वी ईरान एवं बलूचिस्तान की सभ्यता में पाए गए थे अर्थात इस सभ्यता का संबंध ईरान सभ्यता से था।
  • यहां से 6 तांबे की मुद्राएँ और तीन मुहरें मिली है, इनमें से एक इंडो ग्रीक मुद्रा पर यूनानी देवता अपोलो खड़ा हुआ है जिसके हाथों में तीर व पीछे तरकश है, इस मुद्रा के किनारे यूनानी भाषा में महाराजन त्रतर्स लिखा है यह मुद्रा दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व की है।
  • यहां से मिट्टी से बनी वृषभ ( बेल ) आकृति की मूर्ति प्राप्त हुई है जिसे बनासियन बुल की संज्ञा दी गई।
  • यहां के लोग कृषि ( चावल ) व पशुपालन ( कुत्ता, हाथी तथा गेंडा ) से परिचित थे।
  • यहां के लोग मृतकों को कपड़ों व आभूषणों के साथ दफनाते थे अर्थात यह पुनर्जन्म में विश्वास करते थे।
  • यह ग्रामीण सभ्यता है, इनके मकान ईटों के तथा बांस की चटाईयों पर मिट्टी का लेप करके बनाए जाते थे।
  • डॉ गोपीनाथ शर्मा के अनुसार यहां के निवासी चावल व कपास की कृषि से परिचित थे।
  • डॉ गोपीनाथ शर्मा के अनुसार यहां के निवासियों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था तथा इनका प्रिय व पालतू जानवर कुत्ता था।
  • यहां से नाप-तोल के बाट मिले हैं अर्थात यहां व्यापार वस्तु विनिमय पर आधारित था।
  • यहां के निवासी सूती कपड़े पर छपाई का कार्य ”दाबू प्रिंट या ठप्पा प्रिंट” करते थे।

3 गणेश्वर सभ्यता :- नीम का थाना

  • यह खंडेला की पहाड़ी में कांतली नदी के किनारें स्थित है।
  • इस सभ्यता की खोज सर्वप्रथम 1972 में रतनचंद्र अग्रवाल ने की।
  • इसका उत्खनन 1977-78 में रतनचंद्र अग्रवाल और विजय कुमार ने किया।
  • समय = 2800 ईसा पूर्व
  • यहां से प्राप्त तांबा सबसे प्राचीनतम है इसलिए इस सभ्यता को ”ताम्र युगीन सभ्यता की जननी” कहते हैं।
  • संपूर्ण सिंधु घाटी सभ्यता क्षेत्र में तांबे की आपूर्ति गणेश्वर सभ्यता से ही होती थी अतः गणेश्वर सभ्यता को ”पुरातत्व का पुष्कर” कहां जाता है
  • यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय मत्स्य पालन था।
  • यहां के मकान का निर्माण पत्थर से करवाया गया तथा ईंटो का प्रयोग बिल्कुल नहीं किया गया।
  • यहां के निवासियों ने कांतली नदी पर पत्थरों से बांध बना दिया अर्थात एकमात्र स्थान जहां पत्थर के बाँध प्राप्त हुए हैं।
  • यहां से मछली पकड़ने का कांटा, तीर के आगे का नुकीला भाग ( बणाग्रह ), तांबे का बाण, दोहरी पेचदार शिरे वाली ताम्रपिन आदि प्राप्त हुए हैं।
  • यहां से झोपड़ियां व स्याही के प्रमाण मिले हैं।

4 गिलूण्ड सभ्यता :- राजसमंद

  • यह ताम्रयुगीन सभ्यता है।
  • बनास नदी के तट पर स्थित है।
  • उत्खनन = 1957-58 ईस्वी में प्रो. बृजवासीलाल ने
  • यहाँ पर मकान पक्की ईंटो से निर्मित है जिन पर चुने का प्लास्टर चढ़ा है।
  • यहाँ से काले व लाल मृदभांड और क्रीम रंग व काले रंग से चित्रित पात्र मिले है।

5 बालाथल सभ्यता :- उदयपुर

  • खोज = 1962-63 ईस्वी में डॉ. वीरेंद्रनाथ मिश्र
  • उत्खनन = 1993 ईस्वी में डॉ. वीरेंद्रनाथ मिश्र के नेतृत्व में डॉ. वी. एस. शिंदे, डॉ. आर. के. मोहंती और डॉ. देव कोठारी
  • बैराठ के बाद यह दूसरा स्थल है जहाँ से कपड़ा प्राप्त हुआ है।
  • यहां से तांबे के आभूषण व सिक्के प्राप्त हुए हैं सिक्कों पर हाथी व चंद्रमा की आकृतियां हैं।
  • यहां से लोहे गलाने की भट्टियाँ, पत्थर की ओखली, मिट्टी की मूर्ति, दुर्गनुमा भवन, 11 कमरों वाला भवन, सांड व कुत्ते की मूर्तियां आदि प्राप्त हुए हैं।
  • यहां के लोग पशुपालन, कृषि तथा शिकार से परिचित थे।

6 रंगमहल सभ्यता :- श्रीगंगानगर

  • उत्खनन = 1952-54 तक स्वीडिश दल द्वारा
  • यहाँ से कुषाणकालीन और परवर्ती काल की 105 तांबे की मुद्राएं मिली है।
  • यहाँ से एक गुरु-शिष्य की मूर्ति मिली है।

7 बैराठ सभ्यता :- कोटपूतली-बहरोड

  • यह बाणगंगा नदी के किनारें पर मिली।
  • इसे महाभारत कालीन सभ्यता, मौर्यकालीन सभ्यता, राजस्थान की प्राचीन चित्रशाला और अलवर का सिंह द्वार भी कहते है।
  • इसका प्राचीन नाम विराटनगर है।
  • खोज = 1936 ईस्वी में रायबहादुर दयाराम साहनी
  • उत्खनन = 1937 ईस्वी में दयाराम साहनी
  • पुनः उत्खनन = 1962-63 ईस्वी में नीलरत्न बनर्जी और कैलाशनाथ दीक्षित
  • इससे पूर्व जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह के शासनकाल में उनके किलेदार कीताजी खंगारोत के नेतृत्व में यहाँ उत्खनन किया गया। उत्खनन में यहाँ से एक सोने की मंजूषा ( कलश ) प्राप्त हुआ तथा इससे अनुमान लगाया गया की यह भगवान गौतम बुद्ध की अस्थियों के अवशेष थे।
  • महाभारत के अनुसार पांडू पुत्र भीम ने बीजक की पहाड़ी में द्रोपदी की प्यास बुझाने के लिए लात मार कर भीमलात तालाब बनाया, जिससे इसे भीम डूंगरी कहते है।
  • महाभारत के अनुसार मत्स्य जनपद की राजधानी विराटनगर थी। यही पांडवो ने अपना अज्ञातवास राजा विराट के पास बिताया।
  • विश्व में सर्वप्रथम शिलालेख ईरान के शासक दारा प्रथम ने बनाये।
  • भारत में सर्वप्रथम शिलालेख सम्राट अशोक ने बनाये।
  • बैराठ में अशोक महान का भाब्रु शिलालेख मिला।
  • 1999 ईस्वी में बीजक की पहाड़ी से बौद्ध विहार ( मंदिर ), स्तूप ( हीनयान शाखा से संबंधित ) बुद्ध की मथुरा शैली में बनी हुई प्रतिमा मिली।
  • यहां से अशोक महान की आहत पंचमार्क की मुद्रा मिली और यह मुद्रा राजस्थान की सबसे प्राचीन मुद्रा है।
  • यहां से स्वास्तिक चिन्ह मिला अर्थात यहां के लोग सूर्य भगवान की पूजा करते थे।
  • यहां अकबर ने ईदगाह व तांबे के सिक्के ढालने की टकसाल का निर्माण कराया।
  • चीनी यात्री हेवन सॉन्ग भी विराट घूमने आया
  • दयाराम साहनी एवं व्हेनसांग के अनुसार हूण शासक मिहिरकुल ने बैराठ में स्थित बौद्ध स्तूपों एवं बौद्ध विहारों को ध्वस्त करके बौद्ध उपासकों का वध किया।
  • व्हेनसांग की पुस्तक ”सी-यु-की” के अनुसार बैराठ में आठ बौद्ध मठ थे और इन बौद्ध मठों को हूंण शासक मिहिरकुल ने तोड़ा।
  • Rajasthan में सर्वाधिक रॉक पेंटिंग ( शैल चित्र )के प्रमाण बैराठ से मिले हैं।
  • यहां से सर्वाधिक बाढ़ रॉक पेंटिंग ( पक्षियों की शैल चित्र ) मिले।
  • बैराठ से पाषाण काल, मौर्य काल, उत्तर मौर्य काल, प्राचीन भारतीय इतिहास व मध्यकालीन भारतीय इतिहास आदि कालों के प्रमाण मिले हैं।
  • बैराठ से सूती कपड़े में लिपटी 36 मुद्राएं मिली जिसमें से आठ आहत पंचमार्क तथा 28 इंडो ग्रीक मुद्रा थी जिसमें से 16 मुद्राएं मिनेंडर ( यूनानी शासक ) की थी।

भाब्रू शिलालेख :-

  1. इसकी खोज कैप्टन बर्ट ने 1834 ईस्वी में बीजक की पहाड़ी, बैराठ, कोटपूतली-बहरोड ( Rajasthan ) में की थी।
  2. 1837 ईस्वी में जेम्स प्रिन्सेप ने इसे पढ़ा।
  3. यह अशोक महान द्वारा लिखवाया गया था तथा इसकी लिपि ब्राह्मी है।
  4. 1840 ईस्वी में इस शिलालेख को कनिंघम द्वारा चट्टान से काटकर कोलकाता संग्रहालय में ले जाया गया।
  5. इस शिलालेख में अशोक महान को मगध का राजा बताया गया तथा उसके ”जियो और जीने दो की नीति” की जानकारी मिलती है।
  6. इस शिलालेख में अशोक ने बुद्ध-धम्म-संघ तीन शब्द लिखे हुए हैं।
  7. इस शिलालेख में सम्राट अशोक के द्वारा गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाना लिखा गया है।
  8. इस शिलालेख में श्रीमद् भगवत गीता की आलोचना की गई।
  9. इस शिलालेख से कलिंग के युद्ध की जानकारी मिलती है।

8 नोह सभ्यता :- भरतपुर

  • खोज = 1963-64 में रतनचंद्र अग्रवाल
  • यह रूपारेल नदी के किनारें स्थित है।
  • यह सभ्यता लौहयुगीन है।
  • यहाँ से मौर्यकालीन विशालकाय 1.5 मीटर ऊंची जाख बाबा/यक्ष की प्रतिमा, 5 सांस्कृतिक युगो के अवशेष, स्वास्तिक का चिन्ह मिला है।
  • यह एकमात्र सभ्यता है जहाँ पर ताम्रयुगीन, आर्यकालीन एवं महाभारत कालीन सभ्यता के अवशेष मिले है।

9 नगरी सभ्यता :- चित्तौड़गढ़

  • खोज = 1872 ईस्वी में कार्लाइल
  • उत्खनन = 1904 ईस्वी में डॉ डी आर भंडारकर
  • नदी = बेड़च नदी
  • प्राचीन काल में यह शिवि जनपद की राजधानी थी तथा इसे मध्यमिका, मेदपाट, मज्यमिका आदि नामों से जाना जाता है।
  • यहाँ से शिवि जनपद के सिक्के प्राप्त हुए है।
  • यह Rajasthan में खोदा गया प्रथम स्थल है।
  • यहाँ से एक वैष्णव मंदिर के भग्नावशेष प्राप्त हुए है, जो प्राचीनतम वैष्णव मंदिर माना गया है।

10 रैढ़ सभ्यता :- टोंक

  • उत्खनन = 1938 ईस्वी में दयाराम साहनी
  • पुनः उत्खनन = 1938-40 केदारनाथ पुरी
  • यहाँ से मातृदेवी की मूर्ति, गजमुखी यक्ष की मूर्ति तथा एशिया का सबसे बड़ा सिक्कों का भण्डार मिला है इसलिए इसे ”प्राचीन भारत का टाटा नगर” कहते है।

11 नगर सभ्यता :- उणियारा, टोंक

  • उत्खनन = 1938 ईस्वी में केदारनाथ पुरी
  • उपनाम = खेड़ा सभ्यता, मालव प्रदेश
  • यहाँ से मालव, आहड़ सिक्के तथा गुप्तकालीन लेख मिले है।

12 सुनारी सभ्यता :- नीम का थाना

  • उत्खनन = 1980 ईस्वी में राजस्थान पुरातत्व विभाग द्वारा
  • नदी = कांतली
  • यहाँ से प्राचीनतम लोहे गलाने की भट्टियाँ, चावल के अवशेष, कुषाणकालीन मृदभांड, लोहे का प्याला आदि प्राप्त हुए है।

13 ओझियाना सभ्यता :- भीलवाड़ा

  • उत्खनन = 2000 ईस्वी
  • यहाँ से मिटटी के बैल, गायों की मूर्ति मिली है।
  • यहाँ से साबूत मिटटी के बर्तन मिले है, जिन्हे ”डीलक्स टाइप वेयर” कहा जाता है।

14 किराडोत सभ्यता :- जयपुर ग्रामीण

  • यहाँ से तांबे की 28 चूड़ियां मिली है।
  • यहां से एक कांसे की नृत्यांगना की मूर्ति मिली है जिसके एक हाथ में 4 चूड़ियां तथा दूसरे हाथ में 24 चूड़ियां है।

15 जोधपुर सभ्यता :- कोटपूतली-बहरोड

  • उत्खनन= 1972-73 में Rajasthan पुरातत्व विभाग द्वारा आर सी अग्रवाल व विजय कुमार के नेतृत्व में
  • यह ताम्र पाषाण युगीन सभ्यता है।
  • यहां से स्लेटी रंग के चित्रित मृदभांड, मौर्यकालीन सभ्यता के अवशेष, उत्तरी भारत के काली पॉलिश युक्त मृदभांड, लोहा गलाने की भट्टियाँ, मौर्यकालीन लोहे के उपकरण, मनके, हाथी दांत आदि मिले हैं।

16 कुराड़ा सभ्यता :- डीडवाना कुचामन

  • यहां से तांबे के प्राचीन औजार के साक्ष्य मिले हैं, इसलिए इसे औजारों की नगरी कहते हैं।

17 मलाह सभ्यता :- भरतपुर

  • यहां से तांबे का हारपून ( प्राचीन काल में इस औजार से जानवरों का शिकार किया जाता था ) प्राप्त हुआ है।

18 बराोर सभ्यता :- श्रीगंगानगर

  • यह हड़प्पा सभ्यता के समकालीन माना गया है।
  • यह एकमात्र सभ्यता है जहां मिट्टी के बर्तनों में काली मिट्टी का प्रयोग किया गया है।

19 भीनमाल सभ्यता :- जालौर

  • उत्खनन = 1953-54 में रतन चंद्र अग्रवाल

20 नलियासर सभ्यता :- जयपुर ग्रामीण

  • उत्खनन = दयाराम साहनी
  • यहां से प्रतिहार कालीन मंदिर की जानकारी मिली है।

21 ईसवाल सभ्यता :- उदयपुर

  • यहाँ से कुषाणकालीन सिक्के, ऊँट के दाँत तथा लौहयुगीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए है।

22 सोंथी सभ्यता :- बीकानेर

  • खोज = 1953 में अमलानंद घोष
  • उपनाम = कालीबंगा प्रथम

23 मंडोर सभ्यता :- जोधपुर

  • उत्खनन = 1933-34 ईस्वी में सर जॉन मार्शल
  • यहां से 30 लघु आकार के अब शासको के सिक्के प्राप्त हुए।
  • यहां पर  33 करोड़ देवी देवताओं की चादर, मारवाड़ के राठौर राजाओं की छतरियां, मंदोदरी की चंवरी स्थित है।

24 तिलवाड़ा सभ्यता :- बाड़मेर

  • नदी = लूनी नदी
  • उत्खनन = 196768 ई. में Rajasthan पुरातत्व विभाग द्वारा डॉक्टर वी एन मिश्र के नेतृत्व में।
  • यहां से प्राचीनतम पशुपालन के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
  • यह प्रागैतिहासिक कालीन सभ्यता है।

25 गरदडा सभ्यता :- बूंदी

  • नदी = छाजा नदी
  • जहां से देश के प्रथम बर्ड राइडर रॉक पेंटिंग ( शैल चित्र ) प्राप्त हुए हैं

26 नाडोल सभ्यता :- पाली

  • खोज = 1883-84 में एच. डब्लू. के. गैरिक

27 नैनवा सभ्यता :- बूंदी

  • उत्खनन = कृष्ण देव
  • यहां से महिषासुर मर्दिनी की मृणमूर्ति प्राप्त हुई है।

28 बयाना सभ्यता :- भरतपुर

  • यहां से गुप्तकालीन सिक्के व नील की खेती के प्रमाण मिले हैं

29 लोद्रावा सभ्यता :- जैसलमेर

30 गुरारा सभ्यता :- सीकर

  • यहां से चांदी के 2744 पंचमार्क शक प्राप्त हुए हैं।

31 ओला सभ्यता :- जैसलमेर

  • यहां से पाषाण कालीन कुल्हाड़ी प्राप्त हुई है।

32 खानपुरा सभ्यता :- झालावाड़

33 चंद्रावती सभ्यता :- झालावाड़

34 जायल सभ्यता :- डीडवाना-कुचामन

  • यह सभ्यता पूरा पाषाण कालीन है। तथा यहां से हस्तकुठार, चापर, विदारणी नमक पत्थर के उपकरण प्राप्त हुए हैं।

35 कोटडा सभ्यता :- झालावाड़

36 दर सभ्यता :- भरतपुर

37 कुड़ी सभ्यता :- डीडवाना-कुचामन

38 बांका गांव :- भीलवाड़ा

39 डाडाथोरा सभ्यता :- बीकानेर

40 पोरवार, कुंडा व सोनू क्षेत्र :- जैसलमेर

  • यहाँ से चूहें के दांत के प्राचीनतम जीवाश्म प्राप्त हुए है।

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